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Blogumulus by Roy Tanck and Amanda Fazani

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रायपुर, छत्तीसगढ, India
सहीं या गलत बस नजरिये का फर्क है जो एक के लिए गलत है वो दूसरे के लिए सहीं हो सकती है और दो परस्पर विरोधी बातें भी एक ही समय पर सही हो सकती है । इसी विरोधाभास का नाम है दुनिया ।

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Monday, April 12, 2010

चोर चोर चिल्लाते ब्लॉगर

बहुत से विरोधाभास है इस दुनिया में कुछ जो चुभती भी है । कहने को तो बहुत कुछ है पर सोचा की इसकी शुरुवात घर से मतलब ब्लॉग की दुनिया से ही क्यूँ ना करूँ ।
सबसे पहले तो ये कहना जरुरी है की मैं लेख की चोरी करने वालों के साथ नहीं हूँ और ना ही इसे उचित मानता हूँ ।

बड़े दिनों से ये देखता आ रहा हूँ की लगभग हर दिन ही ब्लॉग के लेख की चोरी पर हल्ला मचा ही रहता है कभी किसी कविता या लेख पर तो कभी मिलते जुलते डोमेन नेम को लेकर और आभासी दुनिया के कुछ तथाकथित स्वयंभू सत्यवादी उनमे जाने अनजाने उलझे ही रहते हैं और इनके पास ढेरों तर्क है । अब सभी ब्लोगर्स को या तो पहले ही पता होता है या थोड़े समय बाद पता चल ही जाता है कि यहाँ कुछ भी सुरक्षित नहीं है । बहुत से लोग ऐसे हैं जो यहाँ आदर्श माहौल चाहते है पर क्षमा कीजियेगा ये आभासी दुनिया भी हमारी दुनिया जैसी ही है और इसमें हर तरह के लोग है चोर भी ।

अब बात चोर कहने कि जिन्होंने कोई लेख चुराया है वो तो चोर है ही और मैं उनक समर्थन किसी रूप में नहीं करता ।
इसमें विरोधाभास ये है
विंडोज एक्सपी का मूल्य है लगभग 4000 रुपये, विंडोज 7 का 6000 और 12000 रु, ऑफिस 2003 का करीब 350 रु फोटोशोप का करीब 13455 रूपये

अब कितने लोग है जिनके पास खरीदे हुए ऑपरेटिंग सिस्टम हैं । तो जो शुरूआती जमीन जिस पर आप खड़े हुए है वो ही चोरी कि है तो दुसरो को चोर चोर चिल्लाना ??????????

इसमें वही सारे तर्क लागू होते हैं जो ब्लॉग के लेख चोरी होने पर । तो सोचियेगा जरुर इस नजर से ।

4 comments:

निशांत मिश्र - Nishant Mishrasaid...

आप बहुत सही कहते हैं. इसी चोरी से बचने के लिए हम अपने सबसे कहते हैं की भाई यदि आप हमारी पोस्ट को अपने ब्लौग या कहीं और लगाना चाहें तो कुछ भी परिवर्तन करके लगा सकते हैं पर कृपया लिंक दे दें. कोई कोई लिंक नहीं भी देता... अब क्या किया जाय. सब अपने ही तो भाई-बंधु हैं.
और सौफ्वेयर की चोरी या पायरेसी से बचने के लिए लिनक्स चलाते हैं. उसमें ऐसा क्या नहीं है जो विन्डोज़ या दुसरे व्यावसायिक प्रोग्राम्स में है?

अजित गुप्ता का कोनाsaid...

भैया ह‍म तो प्रेम की चोरी करते हैं। किसी का विचार भी नहीं चुराते। इसलिए अपनी स्‍लेट को कोरी रखते हैं, जिससे अपने ही विचारों को हम समाज को दे सकें। हमने अपना ओपरेटिंग सिस्‍टम खरीद रखा है। बस यही प्रयास रहे कि हम चोर ना बने बाकि सभी का ठेका तो ले नहीं सकते।

Shekhar Kumawatsaid...

bahut khub



shekhar kumawat


http://kavyawani.blogspot.com

Anonymoussaid...

jab chori ki rachnao ko chapne ke baad bhi log vah vah kar jaate hai .

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